सिंदूरी आम-एक भ्रम कथा

वर्ष 2000 की बात है जब मैं 8 साल का था ।
वही कोई जून जुलाई का महीना रहा होगा और स्कूल गर्मी की छुट्टियों के बाद दुबारा स्कूल दुबारा सुरु हो गया था।
बचपन मे तो सबको आम का क्रेज़ होता है तो मुझे भी था, लेकिन मुझे पेड़ से तोड़कर खाने का क्रेज़ था।
मैं सुबह सुबह 5 बजे दौड़ने के बहाने आम तोड़ने निकल जाता था और अपने स्कूल के बगीचे में आम तोड़ने छुप छुपा के पहुच जाता। कभी कभी तो दीवाल में बने दरारों को पकड़ कर छत पर छत पर चढ़ जाता और छिपकर चोरी छुपे आम तोड़ लाता और किसी को पता भी नही चलता । इसी तरीके से कम से कम 15 दिन बीत गए और अधिकतम आम पककर गिर गए या तोड़ लिए गए ।
सोमवार या मंगलवार का दिन रहा होगा जब मैं 4.30 बजे ही उठ गया और फिर सैर के लिए अकेले ही निकल लिया । जब मैं स्कूल के सामने से गुजरा तो किसी ने आवाज दिया की बेटा दरवाजा खोलना, देखना बाहर से लगता है ताला लगा है। मुझे लगा कि कोई फसा हुआ है तो मैं दरवाजा खोलने के लिए मेन गेट के तरफ बढ़ा। उस समय तक मेरे मन मे कोई डर नही था , लेकिन जैसे ही मैं मेन गेट पर पहुचा और गेट के दूसरे तरफ देखा , मेरे तो प्राण सुख से गये । सामने गेट पर तो कोई नही था लेकिन वो सबसे पुराना पीपल जिसपे कुछ लोग कहते थे कि भूत रहता है और हम मानते नही थे, हाथ मे कपूर और अगरबत्ती जलाएं सफेद कपड़े में कोई बृद्ध आदमी उस पेड़ के चक्कर लगा रहा है, और उस पेड़ से या फिर वहाँ कोई और था जो मुझे नही दिखा, उससे बात कर रहा और माफी मांग रहा था। उसके एक एक चक्कर मे अजीब सी दर्द की आवाज उस पेड़ से आ रही थी। मेरे होश उड़ से गये और मैं भागता हुआ घर आया और किसी को बताए बिना मुह ढक कर सो गया ।

स्कूल का समय हो गया और मुझे जगाया गया तो मैं डरा हुआ था और 104 डिग्री बुखार था। पापा दवाई लेकर आये मुझे खिलाया और मैं उस दिन स्कूल नही गया । अगले दिन सुबह स्कूल जाने का बात हुआ तो मैंने पूरा बात बताया और स्कूल जाने से मना कर दिया, लेकिन सबने मेरे बातो को मनघडक कहानी बताया और जबरन स्कूल भेज दिया ।
मैं स्कूल तो गया पर कुछ दिनों तक वहा उस पेड़ के पास जाने से कतराता रहा , लेकिन कुछ ही दिनों में सब ठीक लगने लगा और मुझे भी ये लगने लगा कि मैंने सपना देखा होगा और डर के मारे सच मान लिया उस सपने को ।
वही कोई जुलाई महीने का अंतिम सप्ताह चल रहा होगा और आम का मौसम खतम सा हो गया था लेकिन किसी किसी पेड़ पर चुनिंदा आम दिख रहे थे ।
एक दिन तीसरी घंटी के बाद मैं पानी पीने के लिए गया, वापस आते हुए मुझे एक पेड़ में लगा हुआ एक सिंदूरी आम दिखा जो कि पक गया था । मैंने दो चार पत्थर उठाये और निशाना लगाया , दो बार पत्थर आम पर लगा लेकिन वो आम नही टूटा फिर मैं हार मानकर अपने क्लास में चल गया । वैसे वो जो आम का पेड़ जिसपे सिंदूरी आम लगा हुआ था वो उस पीपल  के पेड़ के बगल में ही था।
छठी घंटी के खतम होने के बाद मैं दुबारा पानी पीने के लिए निकला लेकिन इस बार एक दोस्त के साथ ।
हमारे स्कूल में पानी पीने का एक ही नल है और वहां तक पहुचने के लिए उस पीपल के पेड़ से होकर गुजरना पड़ता और रास्ते मे वो आम का पेड़ भी पड़ता था। इस बार भी मैन उस आम पर नजर डाला लेकिन वो मुझे पेड़ पर दिख नही, मेरी नजर उस आम को जमीन पर ढूंढने लगी और जमीन पर आम दिखते ही मैं भागकर उसे उठा लिया।
मैं तो इसको अपना भाग्य मान रहा था कि इस बार बिना मेहनत के ही मिल गया । आम हाथ मे लेने पर पता चला कि ये सिंदूरी आम नही है इसपर तो सिंदूर लगा हुआ है। मेरे सहपाठी में मुझे आम खाने से मना किया पर मुझे लगा कि वो खुद खाना चाहता है इसलिए ऐसा बोल रहा है। मैन आम उठाया और हम दोनों पानी के नल के तरफ चल दिये।
दोनो ने पानी पिया और मैने आम को धोकर खा लिया, दोस्त ने फिर मना किया पर मैं नही माना और पूरा आम अकेले खा गया ।
मैं और मेरा दोस्त दोनो ही आकर क्लास में बैठ गए। सातवी घंटी सुरु हो गयी और मास्टर जी ने पढना सुरु कर दिया। देखते ही देखते मुझे कब नींद आ गया पता ही नही चला और मैं सो गया । क्लास के बच्चो ने और मास्टर जी ने मुझे जगाने का बहुत कोशिश किया और आखिर में थक हार कर मुझे मेरे घर पहुचा कर आ गए ।
चार दिन बाद मुझे होश आता है और मैं देखता हूं कि मेरे हाथ और पैर में सुई लगी हुई है और बोतल चढ़ रहा है, मैं डॉक्टर के यहाँ हूँ मुझे सब बताया जाता है। डॉक्टर से छुट्टी मिलने पर मेरे घरवाले मुझे वापस घर लाते हैं। घर आते ही डर लगना सुरु हो गया, मुझे सब जगह ऐसा लगने लगा कि कोई है मेरे इर्द गिर्द यहा तक कि जो हवा के झरोखे है उनसे भी डर  लगने लगा, लेकिन मैने इस बात को घर मे किसी को नही बताया और रात को खाना खाकर सो गया। 
रात का सपना- मुझे मत मारो मुझे मत मारो मैं चिल्ला रहा हु और दो लोग मुझे मार रहे है और मुझपर तेल डाल रहे हैं, उन्होंने मुझे बहुत मारने के बाद मुझपर तेल डालकर आग लगा दिया, मैं दौड़ रहा हु, सामने से उनमे से ही एक ने अपना ट्रक स्टार्ट किया और कुचल दिया और उठा कर पीपल के पेड़ के पास बने कुए में फेंक दिया ।
मैं चिल्ला रहा हूँ, पापा आकर मुझे जागते हैं, मैं उठता हु और अपने को पूरे पसीने में भीग हुआ पाता हूँ। मैन पुरा कहानी घरवलो को बताया, सबने ये बोल कर टाल दिया कि बुरा सपना था, लेकिन उस दिन से मेरे मन मे डर ने जगह बना लिया। मैं स्कूल नही गया, और घर पे ही पूरे दिन सोता रहा, शाम को जैसे ही थोड़ा थोड़ा अंधेरा होना सुरु हुआ मुझे अलग सा महसूस होने लगा,  मुझे झरोखों में कोई जलता हुआ दिखने लगा फिर ऐसा लगा कि जैसे दीवाल में से कोई ट्रक चलाकर मुझे कुचलने का कोशिश कर रहा है । मैं कोने में बैठ गया आँखे बंद किया और अपने मुह को छिपा लिया। घर मे ही किसी का नजर मुझपर पड़ा और उन्होंने तुरंत पापा को बताया। मुझे बुखार की दवाई दी गयी और फिर झाड़ फुक कराया गया, कुछ दिनों तक मैं सही रहा और फिर वैसा ही पहले जैसा हाल हो गया। 
एक तांत्रिक बाबा को बुलाया गया , उन्होंने कुछ मंत्र पढ़े और बताया कि किसी आत्मा का साया है इसपर जो कि तड़प रहा है और कुछ कहना चाहता है इसलिए उसने इस बच्चे को पकड़ा है। जो भी कहानी इस लड़के ने बताया है वो सब सही है। उस पीपल के पेड़ के पास पहले एक कुआँ हुआ करता था और वहा पर ऐसा घटना हुआ है। जब वो स्कूल बना तो कुए को मिट्टी से भर दिया गया और वो आत्मा उस कुए से निकल कर पीपल पर आ गया । वो बहुत समय से यहाँ फसा हुआ है और अपना मुक्ति चाहता है इसलिए उसने अपना कहानी बताने के लिए इस बच्चे को अपना जरिया बनाया।
उस तांत्रिक ने एक ताबीज मेरे बाये हाथ के बाजू में बांध दिया और मुझे उस ताबीज को नही निकलने का नसीहत दिया। धीरे धीरे सबकुछ सामान्य हो गया मेरे लिए । छह साल बाद वर्ष 2006 में  मुझे वो ताबीज निकलने का मन कर किया और मैन उसे उतार दिया ।

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