कहने से ये मैं डरता हूँ..
कहने से ये मैं डरता हूँ
की अब भी तुमपे मरता हूं
चाहत की इन राहो से
दिन रात मैं गुजरता हूं
तुम्हारी इस चाहत का इंतजार मैं करता हूं
कहने से ये मैं डरता हूँ
की अब भी तुमपे मरता हूं ।।
सुबह से लेकर शाम तक
तुम ही तुम बस दिखती हो
दिल की इन गलियो में
सपनो से होके गुजरती हो
प्यार का ये इक लम्हा है
जिसमे तुम हरपल रहती हो
सुबह से लेकर शाम तब
तुम ही तुम बस दिखती हो ।।
चाहा कि भूल जाऊं तुम्हे
बस यही चाहत इक याद दिलाती है
दिल की ये नादानी है
बिन कहे हि तुमपे जाती है
पहले तो हम बेगाने थे
अब इश्क़ का जहर पिलाती है
चाहा कि भूल जाऊं तुम्हे
बस यही चाहत इक याद दिलाती है ।।
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